सरदार वल्लभ भाई पटेल की निर्भयता

सरदार वल्लभभाई पटेल बोरसद से करीब 40 कि.मी. दूर, नडियाद पढ़ने गये। उनमें देशप्रेम, सत्यनिष्ठा और न्यायप्रियता बचपन से ही विद्यमान थीं।
एक दिन उन्होंने देखा कि हमें पढ़ानेवाले शिक्षक अग्रवाल, प्रधानाध्यापक भरूचीया साहब के साथ गपशप लगा रहे हैं। बच्चे पढ़ने के लिए आये हैं और शिक्षक लोग कार्यालय में ठहाके मारकर हँस रहे हैं, नाश्ता आदि कर रहे हैं।
वल्लभभाई पटेल ने अपनी कक्षा के बच्चों को उत्साहित किया और सबने मिलकर भजन गाना शुरू कर दिया। एक बच्चा भजन गाये और बाकी के सारे उसके पीछे माने लगे।
एक साथ भजन गाने के कारण आवाज प्रधानाध्यापक भरूचीया साहब के कार्यालय तक पहुँच गयी। अग्रवालजी के साथ दूसरे शिक्षक भी आ गये। अग्रवालजी ने कहाः ‘यह क्या करते हो ?’ और हाथ पकड़वाकर वल्लभभाई को कक्षा से बाहर निकाल दिया। बच्चों ने देखा कि यह तो अन्याय है, जुल्म है। अतः दूसरे बच्चे भी कक्षा से बाहर निकल गये।
दूसरे दिन स्कूल शुरू हुआ। वल्लभभाई भी आय, परंतु शिक्षक ने कह दिया “इसको नहीं आने देंगे।”
बच्चों ने कहा: ये नहीं आयेगा तो हम भी नहीं आयेंगे।” और बच्चे बाहर ही घूमने लगे।
अग्रवालजी ने धमकाया: “मैं तुम लोगों की खबर ले लूँगा।”
यह कहकर वे प्रधानाध्यापक के पास गये।
भरूचीया साहब और अग्रवाल साहब की आपस में मित्रता थी। उन्होंने वल्लभभाई को बुलवाया और कहा: “ऐ लड़के! तूने मजन गवाया आर पूरे स्कूल में शोर मचा दिया। तूने गलती की है अतः अपने शिक्षक से माफी माँग।”
तब ‘सत्य ही ईश्वर है’ ऐसा समझनेवाले बल्लभभाई ने कहा: “माफी? माफी मैं मांगू? मैं माफी नहीं माँगूँगा। मेरा गुनाह नहीं था। गुनाह न होने पर भी माँफी माँगना अनुचित है। अनुचित को समर्थन देने का पाप में नहीं करूंगा।”
“इतना शोर हो रहा था।”

“साहब ! हम माता-पिता, कुटुम्ब परिवार को छोड़कर इतनी दूर पढ़ने के लिए आते हैं और अग्रवाल साहब पढ़ाना छोड़कर आपके साथ गप्पें मार रहे थे, नाश्ता कर रहे थे। बच्चे शोर मचा रहे थे तो मैंने भजन गवाया। इसमें मैंने क्या गलती की ? माफी तो उनको मागनी चाहिए कि अपना कर्तव्य भूलकर बच्चों में बुरे संस्कार पड़ने का मौका दे रहे थे। अब आप ही न्याय कीजिये।”
भरूचीया साहब के लिए मानों, पैरों तले जमीन ही खिसक गयी। उन्होंने अग्रवाल साहब से कहा: “बड़ा तेजस्वी विद्यार्थी है। इससे दादागिरी नहीं चलेगी, अन्याय नहीं चलेगा। गलती अपनी है। ऐसे विद्यार्थी को दबाना ठीक नहीं है। अगर बात आगे बढ़ जायेगी तो तेरी मेरी नौकरी चली
जायेगी। जाओ, चुपचाप पढ़ाना शुरू कर दो।”

न्यायप्रियता और देशप्रेम तो सरदार वल्लभभाई में कूट-कूटकर भरे थे। किसीके प्रति अन्याय होता ये नहीं देख सकते थे।

उस समय अंग्रेज हुकुमत थी। अतः अंग्रेज लड़कों से भारतीय लड़के दबकर रहते थे। एक बार किसी भारतीय लड़के को किसी अंग्रेज ने धमकाया और जोर से थप्पड़ मार दिया कि ‘इथर से क्यों गया ? तुम हिन्दुस्तानी को इधर से नहीं जाना चाहिए।’
वल्लभभाई ने यह देखा तो पहले तो चुप रहे परंतु जब उसने दूसरी बार भी थप्पड़ मार दिया तो उनसे सहा न गया। हालाँकि उनकी उम्र छोटी थी परंतु समझ छोटी न थी।
दूसरे दिन जब वह अंग्रेज लड़का स्कूल जा रहा था तो वल्लभभाई ने हाकी की लकड़ी से उसके पैर पर जोर से प्रहार किया। लड़का गिर पड़ा और इधर-उधर देखने लगा। वल्लभभाई ने उसको उठाया और घड़ाक से दो तमाचे गाल पर रख दिये: “क्यों, तुम्हीं थे न मेरे हिन्दुस्तानी भाई को अकारण डॉटने और मारनेवाले ?”
अंग्रेज ने कहा: “मैं तुझे देख लूँगा।” “क्या देख लेगा, अभी ले देख ले।”
घड़ाक से तीसरा तमाचा भी लगा दिया।

सत्यप्रिय, न्यायप्रिय और देशप्रेमी यही सरदार वल्लभभाई पटेल आगे चलकर देश के गणमान्य नेता के रूप में प्रसिद्ध हुए। सरदार वल्लभभाई पटेल को कौन नहीं जानता ?

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *